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Sunday, July 1, 2012

खेल से बड़े नहीं खिलाड़ी

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के महत्वाकांक्षी प्रयोग आईपीएल में मैच फिक्सिंग के आरोपी पांच क्रिकेटरों पर प्रतिबंध से इस खेल का काला पक्ष एक बार फिर समाचार माध्यमों की सुर्खियों में है। एक टीवी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिये यह काला पक्ष उजागर किया था कि कभी भद्र- जनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट में अब ऐसे खिलाड़ी भी हैं जो पैसे की खातिर स्पॉट फिक्सिंग कर खेल को बेचने के लिए तत्पर रहते हैं। इस खुलासे के बाद तत्काल जब इन पांच खिलाडिय़ों टी पी सुधींद्र, शलभ श्रीवास्तव, मोहनीश मिश्रा, अमित यादव और अभिनव बाली को निलंबित किया गया था, तब न सिर्फ इन लोगों ने स्वयं को निर्दोष बताया था, बल्कि उनसे सहानुभूति के स्वर भी उभरे थे, लेकिन बोर्ड की भ्रष्टाचाररोधी इकाई द्वारा जांच के बाद अनुशासन समिति द्वारा इन पर प्रतिबंध से साफ है कि वाकई ये खेल के खिलाड़ी की बजाय कारोबारी बनने को लालायित थे। अनुशासन समिति के इस फैसले का पूर्व खिलाडिय़ों समेत कमोबेश सभी ने स्वागत किया है। यह इस बात का प्रमाण भी है कि क्रिकेट के दीवाने इस देश में लोग इस खेल की गिरती प्रतिष्ठा से चिंतित हैं। बेशक यह खेल के आकर्षण और रोमांच का ही परिणाम है कि लोग पैसा और समय खर्च कर उसे देखने स्टेडियम तक जाते हैं या फिर टीवी के सामने जम जाते हैं। कड़े संघर्ष वाले मैचों में हर गेंद और शॅाट पर दर्शकों के बीच से उठने वाला शोर खेल के प्रति उनके लगाव का ही प्रमाण है, पर जब पता चले कि सब कुछ पहले से फिक्स है तो वह खेल, उसकी प्रतिष्ठा और खेलï-प्रेमियों के लगाव के साथ विश्वासघात ही माना जायेगा। बेशक यह विश्वासघात उस टीम के साथ भी है, जिस टीम का ऐसे बिकाऊ खिलाड़ी प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसलिए इस विश्वासघात की कठोरतम सजा ही मिलनी चाहिए, पर क्या आईपीएल के इन खिलाडिय़ों को हाल ही में दी गयी यह सजा कठोरतम है ? दरअसल आजीवन प्रतिबंध की सजा पाने वाले टी पी सुधींद्र के अलावा शेष चार खिलाडिय़ों को दी गयी सजा से तो लगता है कि उन्हें सस्ते में ही छोड़ दिया गया है। इनमें से भी एक शलभ श्रीवास्तव पर पंाच वर्ष का प्रतिबंध लगाया गया है तो शेष तीन पर एक-एक वर्ष का ही। तर्क यह दिया गया है कि टीपी सुधींद्र रुपयों की एवज में नो-बॉल फेंककर बाकायदा स्पॉट मैच फिक्सिंग में शामिल थे, जबकि शेष खिलाडिय़ों ने वैसा करने के लिए तैयार होने की ही बात कही थी। बेशक अपराध करने में और अपराध करने के लिए तैयार होने में तकनीकी रूप से फर्क है, लेकिन यह फर्क नीयत अैार मकसद नहीं, बल्कि मौका मिलने और मौके का इंतजार करने भर का है। इसलिए सजा में भी इतना बड़ा फर्क नहीं होना चाहिए। इसका आशय यह हरगिज नहीं है कि सुधींद्र पर लगाया गया आजीवन प्रतिबंध ज्यादा सख्त सजा है, बल्कि शलभ श्रीवास्तव, मोहनीश मिश्रा, अमित यादव और अभिनव बाली को भी अधिक सख्त सजा मिलनी चाहिए थी। ऐसी सोच महज क्रिकेट-प्रेमियों की ही नहीं है, बल्कि अनेक पूर्व खिलाडिय़ों का भी यही मानना है कि खेल को कलंकित करने की सोच भी रखने वाले किसी खिलाड़ी के लिए खेल में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और उसकी अनुशासन समिति यह तर्क दे सकती है कि अपराध किये बिना ही, महज उसके लिए तैयार होने के अपराध में ज्यादा सख्त सजा इन युवा खिलाडिय़ों का करिअर बर्बाद कर सकती थी, पर फिर यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है कि बोर्ड को खेल से ज्यादा खिलाडिय़ों के भविष्य की चिंता क्यों है?
और वह भी उन खिलाडिय़ों की, जिनके लिए खेल साधना नहीं, बल्कि अधिकाधिक रुपया कमाने का धंधामात्र है? जो खिलाड़ी इस स्पॉट फिक्सिंग में पकड़े गये हैं, उनकी पहचान रणजी टा्रॅफी और चमक-दमक वाली आईपीएल ही है। उनमें से कौन कब भारतीय टीम तक पहुंच पायेगा—कह पाना मुश्किल है। जबकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की सोच तो यह होनी चाहिए कि कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नहीं हो सकता, इसलिए खेल को दंाव पर लगाने वाले खिलाडिय़ों के लिए खेल में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। किसी या कुछ खिलाडिय़ों के करिअर से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है खेल की पवित्रता और प्रतिष्ठा। अगर खेल को कलंकित करने वालों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई कर सही संदेश नहीं दिया गया तो फिक्सिंग का यह रेाग एक दिन नासूर बन जायेगा। जरा याद करिए कि वर्ष 2000 में मैच फिक्सिंग के ही आरोप में देश के कप्तान रह चुके मोहम्मद अजहरुद्दीन और अजय शर्मा पर आजीवन, जबकि मनोज प्रभाकर और अजय जडेजा पर पांच वर्ष का प्रतिबंध लगाया गया था। कह सकते हैं कि वह सही कदम था, पर जब खेल और देश क ी टीम के हित को बेचने के आरोप में आजीवन प्रतिबंध वाले अजहर को देश का सत्तारूढ़ दल ही संसद में भेजकर सम्मानित करेगा, तो ऐसी ही प्रवृत्तियां प्रोत्साहित होंगी। शायद वही हो भी रहा है। यह भी अनायास नहीं है कि बोर्ड और उसकी महत्वपूर्ण समितियों पर भी ऐसे चेहरे काबिज हैं, जिनका खेल से कभी कोई संबंध नहीं रहा।

2 comments:

  1. कुछ खिलाडिय़ों के करिअर से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है खेल की पवित्रता

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  2. आपके ब्लॉग पर लगा हमारीवाणी क्लिक कोड ठीक नहीं है और इसके कारण हमारीवाणी लोगो पर क्लिक करने से आपकी पोस्ट हमारीवाणी पर प्रकाशित नहीं हो पाएगी. कृपया लोगिन करके सही कोड प्राप्त करें और इस कोड की जगह लगा लें. क्लिक कोड पर अधिक जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करें.

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    टीम हमारीवाणी

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