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Monday, May 13, 2013

कम उम्र में होने वाले गंजेपन से बचना है तो इन बातों का रखें ख्याल

सनिल सक्सेना ।। कम उम्र में जब बाल झडऩे लगें तो उसका एक मुख्य कारण बालों की सही देखभाल न करना भी होता हैं। वैसे तो बालों के झडऩे के पीछे कई अनुवांशिक व शारीरिक कारण भी होते हैं लेकिन साथ ही एक बड़ा बालों की सही देखभाल न करना भी होता हैं। अधिकतर लोग जब शुरूआत में ये समस्या शुरू होती है तब इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते ऐसे में ही कई बार समस्या गंभीर रूप ले लेती है। कुछ बातें ऐसी हैं जिनका ध्यान रखकर इस परेशानी को जड़ से खत्म किया जा सकता है आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे ही आसान उपायों के बारे में जब भी सिर धोएं तेल जरुर लगाएं बिना तेल लगाएं सिर धोने से बाल बेजान व रूखे हो जाते हैं। इसीलिए बालों को हेल्दी व शाइनी बनाने के लिए शैम्पू करने के कम से कम एक घंटे पहले बालों की चंपी करें। सरसों का तेल लगाने से बाल जल्दी घने होते हैं। कम से कम सप्ताह में एक दिन आंवला, रीठा और शंखपुष्पी से बना हुआ असली और शुद्ध चूर्ण थोड़े से पानी में मिलाकर बालों की जड़ों में लगाएं। इस आयुर्वेदिक ट्रिटमेंट से आपके बाल प्राकृतिक रूप से स्वस्थ एवं मजबूत बनेंगे। बालों को बार-बार कंघी करने से भी बाल डैमेज होते हैं बहुत कम अंतराल पर बालों में कंघी न करें इससे बाल ज्यादा तैलीय हो जाते हैं। इसके अलावा कुछ टेबलेट्स में भी ऐसे रासायन होते हैं जिनके कारण बाल बहुत ज्यादा ड्राय व कमजोर हो जाते हैं तो अगर आप पहले से ही बाल झडऩे की समस्या से परेशान हैं तो डॉक्टर की बिना सलाह लिए दवाई खाने से बचें। साथ ही जब कोई भी ट्रिटमेंट लें तो उसके पहले ही डॉक्टर को बता दें कि आप बहुत ज्यादा बाल झडऩे की समस्या से परेशान हैं। बालों को प्रतिदिन गुनगुने पानी से धोएं ।यदि आपके बाल तैलीय हैं तो कंडीशनर का इस्तेमाल न करें। बालों को धोने के लिए नेचुरल शैम्पू का इस्तेमाल करें। बालों में बार-बार ज्यादा केमिकल्स युक्त शैंपू व कंडीशनर की बजाए घरेलू शैंपू व नेचुरल कंडीशनर का उपयोग करें तो बाल हमेशा घने रहेंगे। अगर ऊपर लिखी सभी बातों का ध्यान रखेंगे तो कम उम्र में गंजापन का शिकार नहीं होना पड़ेगा।बालों का सीधा संबंध पेट से होता है। यदि पाचन तंत्र और हाजमा ठीक नहीं है तो बालों की जड़ें कमजोर होंगी और वे टूटने झडऩे लगेंगे। इसलिए अपने खान-पान और हाजमे को हमेशा ठीक रखें।सूर्योदय के समय शुद्ध ताजी हवा में आसन बिछाकर प्राणायाम और शीर्षाषन व सर्वांगासन का नियमित अभ्यास करें।

Saturday, May 4, 2013

मानसिक रोगी बनाता इन्टरनेट

सनिल सक्सेना : ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की फॉर्माकोलोजी की प्रोफेसर सुसान ग्रीनफील्ड कहती हैं, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. सच पूछिए, तो यह वैसे ही अनपेक्षित है, जैसे जलवायु परिवर्तन का मुद्दा. सुसान एक पुस्तक पर काम कर रही हैं, जिसका विषय यह है कि कैसे एक डिजिटल संस्कृति विकसित हो रही है. एक ऐसी संस्कृति जो हमारे भले के लिए नहीं है.हम अपने बच्चों के लिए एक बेहतर दुनिया देने के बजाय एक ऐसी दुनिया दे रहे हैं, जिस पर तकनीक हावी हो गया है.
दुनिया भर में जो शोध हो रहे हैं, उससे साफ है कि अब इंटरेनट महज डिलिवरी सिस्टम नहीं रहा, जैसा कि पहले कहा गया था. इसने एक नया मानसिक वातावरण तैयार किया है. एक डिजिटल वातावरण, जिसकी धुरी मानव मस्तिष्क है. इसकी जकड़ से बहुत कम ही लोग बच पायेंगे.
16 साल पहले एमआइटी (मैसाचुसेट्स इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी) के सात युवा शोधकर्ताओं ने एक ऐसा प्रयोग किया, जिसमें मानव व मशीन के बीच फर्क कम से कम किया जा सके. भौतिक और काल्पिनक जगत का साथ. मानव व कंप्यूटर का साथ. उन्होंने अपने पॉकेट में की-बोर्ड और रेडियो ट्रांसमीटर रखे और आंखों के सामने कंप्यूटर स्क्रीन. वे अपने को साइबोग्र्स कहते थे.
हमारी-आपकी नजर में उन्हें सनकी ठहराया जा सकता है, पर क्या आज हम सभी साइबोर्ग नहीं हैं? एमआइटी की मनोवैज्ञानिक शेरी टर्कल कहती हैं कि जीवन में हर समय जुड़ाव रखना ऊपरी तौर पर सामान्य दिख सकता है, पर ऐसा है नहीं. अमेरिका में स्थिति किस तरह बिगड़ गयी है, इसका आकलन आप इस बात से कर सकते हैं कि अमेरिकियों ने खुद को मशीन में खपा लिया है. वे प्रतिदिन आठ घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं. यह उस समय से ज्यादा है, जो हम सोने के साथ-साथ दूसरी गतिविधियों में बिताते हैं. किशोरों (टीएनजर्स) की बात करें, तो वे प्रतिदिन स्कूलों में सात घंटे कंप्यूटर पर बिताते हैं. अगर इसमें दूसरी तकनीक को भी जोड़ लें, तो यह 11 घंटे से भी अधिक समय हो जायेगा.
राष्ट्रपति बराक ओबामा पहले कार्यकाल के लिए प्रचार कर रहे थे, तब आइफोन लांच हो रहा था. अब अमेरिका में स्मार्टफोन को पुराने मॉडल्स आउटडेटेड हो चुके हैं. लोग इंटरनेट के इतने क्रेजी हो गये हैं कि एक तिहाई यूजर्स बिस्तर से उठने के बाद ही ऑनलाइन हो जाते हैं.
      
पलक झपकते ही टेक्स्ट मैसेज पहुंचने का असर यह है कि औसतन हर व्यक्ति (किसी भी उम्र का) एक महीने में 400 टेक्स्ट भेजने या ग्रहण करने लगा है. यह वर्ष 2007 के मुकाबले चार गुना अधिक है. 2007 के आंकड़ों की तुलना करें, तो किशोर औसतन प्रतिमाह 3,700 टेक्स्ट भेजते या ग्रहण करते हैं. यह पांच साल पहले की तुलना में दो गुना है. इनमें से दो तिहाई किशोर, जिन्हें आप साइबोर्ग कह सकते हैं, को लगता है कि उनका फोन वाइब्रेट कर रहा है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता है. शोधकर्ता इसे फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम कहते हैं. पांच सालों में इन आंकड़ों में जो परिवर्तन हुए हैं, उससे लगता है कि हमारे हाथों से लगाम छूट चुकी है. अब कुछ भी हमारे नियंत्रण में नहीं रहा.
सनकी बना रहा इंटरनेट?
प्रश्न है कि क्या इंटरनेट हमें क्रेजी (सरल भाषा में कहें तो सनकी) बना रहा है? इसके लिए आप न तो तकनीक या न ही इसके कंटेंट को दोष दे सकते हैं. दुनिया की मशहूर पत्रिका न्यूजवीक रिव्यू ने कई देशों से एकत्र अपनी रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि इंटरनेट हमें एक तरह के सनक की ओर धकेल रहा है. यूसीएलए स्थित सेमेल इंस्टीटय़ूट ऑफ न्यूरोसाइंस एंड ह्यूमन बिहेवियर के निदेश्क पीटर व्हाइब्रो कहते हैं, कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक कोकीन की तरह है. यह कोकीन अवसाद के चक्र को ईंधन देता है.
      
हमारे मन-मस्तिष्क पर इंटरनेट का क्या असर पड़ा है, इस विषय पर निकोलस कार की चर्चित पुस्तक है द शैलोज. इसे पुलित्जर पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया था. कैलिफोर्निया की मनोवैज्ञानिक लैरी रोसन ने नेट के इस्तेमाल पर दशकों शोध किया है. उनका मानना है कि इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें तनावग्रस्त करता है, हमें इस ओर ले जाता है कि हम इस पर ही निर्भर हो जायें. यहां तक कि यह हमें पागल भी बना सकता है.
चीन कर रहा सुरक्षित इस्तेमाल के उपाय
इंटरनेट और मोबाइल व्यसन की चीजें हैं, यह बहुत पहले ही स्थापित हो चुका है, पर इसका विरोध करनेवाले भी बहुत पहले से ही रहे हैं. मशीनों का मानव के मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ा है और इसके दुष्प्रभाव को कभी मानसिक विकार की श्रेणी में नहीं रखा गया, लेकिन पहली बार इस प्रभाव का आकलन किया जा रहा है. अमेरिका के डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिस्ऑडर में इसे पहली बार शामिल किया जा रहा है. जब पहली बार डीएसएम की रिपोर्ट जारी की जायेगी, तब उसमें इंटरनेट व्यसन के बारे में भी बताया जायेगा. चीन, ताइवान और कोरिया में इंटरनेट व्यसन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के रूप में लिया है. इन देशों ने इससे निबटने की तैयारी भी शुरू कर दी है.
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