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Saturday, May 4, 2013

मानसिक रोगी बनाता इन्टरनेट

सनिल सक्सेना : ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की फॉर्माकोलोजी की प्रोफेसर सुसान ग्रीनफील्ड कहती हैं, यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. सच पूछिए, तो यह वैसे ही अनपेक्षित है, जैसे जलवायु परिवर्तन का मुद्दा. सुसान एक पुस्तक पर काम कर रही हैं, जिसका विषय यह है कि कैसे एक डिजिटल संस्कृति विकसित हो रही है. एक ऐसी संस्कृति जो हमारे भले के लिए नहीं है.हम अपने बच्चों के लिए एक बेहतर दुनिया देने के बजाय एक ऐसी दुनिया दे रहे हैं, जिस पर तकनीक हावी हो गया है.
दुनिया भर में जो शोध हो रहे हैं, उससे साफ है कि अब इंटरेनट महज डिलिवरी सिस्टम नहीं रहा, जैसा कि पहले कहा गया था. इसने एक नया मानसिक वातावरण तैयार किया है. एक डिजिटल वातावरण, जिसकी धुरी मानव मस्तिष्क है. इसकी जकड़ से बहुत कम ही लोग बच पायेंगे.
16 साल पहले एमआइटी (मैसाचुसेट्स इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी) के सात युवा शोधकर्ताओं ने एक ऐसा प्रयोग किया, जिसमें मानव व मशीन के बीच फर्क कम से कम किया जा सके. भौतिक और काल्पिनक जगत का साथ. मानव व कंप्यूटर का साथ. उन्होंने अपने पॉकेट में की-बोर्ड और रेडियो ट्रांसमीटर रखे और आंखों के सामने कंप्यूटर स्क्रीन. वे अपने को साइबोग्र्स कहते थे.
हमारी-आपकी नजर में उन्हें सनकी ठहराया जा सकता है, पर क्या आज हम सभी साइबोर्ग नहीं हैं? एमआइटी की मनोवैज्ञानिक शेरी टर्कल कहती हैं कि जीवन में हर समय जुड़ाव रखना ऊपरी तौर पर सामान्य दिख सकता है, पर ऐसा है नहीं. अमेरिका में स्थिति किस तरह बिगड़ गयी है, इसका आकलन आप इस बात से कर सकते हैं कि अमेरिकियों ने खुद को मशीन में खपा लिया है. वे प्रतिदिन आठ घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं. यह उस समय से ज्यादा है, जो हम सोने के साथ-साथ दूसरी गतिविधियों में बिताते हैं. किशोरों (टीएनजर्स) की बात करें, तो वे प्रतिदिन स्कूलों में सात घंटे कंप्यूटर पर बिताते हैं. अगर इसमें दूसरी तकनीक को भी जोड़ लें, तो यह 11 घंटे से भी अधिक समय हो जायेगा.
राष्ट्रपति बराक ओबामा पहले कार्यकाल के लिए प्रचार कर रहे थे, तब आइफोन लांच हो रहा था. अब अमेरिका में स्मार्टफोन को पुराने मॉडल्स आउटडेटेड हो चुके हैं. लोग इंटरनेट के इतने क्रेजी हो गये हैं कि एक तिहाई यूजर्स बिस्तर से उठने के बाद ही ऑनलाइन हो जाते हैं.
      
पलक झपकते ही टेक्स्ट मैसेज पहुंचने का असर यह है कि औसतन हर व्यक्ति (किसी भी उम्र का) एक महीने में 400 टेक्स्ट भेजने या ग्रहण करने लगा है. यह वर्ष 2007 के मुकाबले चार गुना अधिक है. 2007 के आंकड़ों की तुलना करें, तो किशोर औसतन प्रतिमाह 3,700 टेक्स्ट भेजते या ग्रहण करते हैं. यह पांच साल पहले की तुलना में दो गुना है. इनमें से दो तिहाई किशोर, जिन्हें आप साइबोर्ग कह सकते हैं, को लगता है कि उनका फोन वाइब्रेट कर रहा है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं होता है. शोधकर्ता इसे फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम कहते हैं. पांच सालों में इन आंकड़ों में जो परिवर्तन हुए हैं, उससे लगता है कि हमारे हाथों से लगाम छूट चुकी है. अब कुछ भी हमारे नियंत्रण में नहीं रहा.
सनकी बना रहा इंटरनेट?
प्रश्न है कि क्या इंटरनेट हमें क्रेजी (सरल भाषा में कहें तो सनकी) बना रहा है? इसके लिए आप न तो तकनीक या न ही इसके कंटेंट को दोष दे सकते हैं. दुनिया की मशहूर पत्रिका न्यूजवीक रिव्यू ने कई देशों से एकत्र अपनी रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि इंटरनेट हमें एक तरह के सनक की ओर धकेल रहा है. यूसीएलए स्थित सेमेल इंस्टीटय़ूट ऑफ न्यूरोसाइंस एंड ह्यूमन बिहेवियर के निदेश्क पीटर व्हाइब्रो कहते हैं, कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक कोकीन की तरह है. यह कोकीन अवसाद के चक्र को ईंधन देता है.
      
हमारे मन-मस्तिष्क पर इंटरनेट का क्या असर पड़ा है, इस विषय पर निकोलस कार की चर्चित पुस्तक है द शैलोज. इसे पुलित्जर पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया था. कैलिफोर्निया की मनोवैज्ञानिक लैरी रोसन ने नेट के इस्तेमाल पर दशकों शोध किया है. उनका मानना है कि इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें तनावग्रस्त करता है, हमें इस ओर ले जाता है कि हम इस पर ही निर्भर हो जायें. यहां तक कि यह हमें पागल भी बना सकता है.
चीन कर रहा सुरक्षित इस्तेमाल के उपाय
इंटरनेट और मोबाइल व्यसन की चीजें हैं, यह बहुत पहले ही स्थापित हो चुका है, पर इसका विरोध करनेवाले भी बहुत पहले से ही रहे हैं. मशीनों का मानव के मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ा है और इसके दुष्प्रभाव को कभी मानसिक विकार की श्रेणी में नहीं रखा गया, लेकिन पहली बार इस प्रभाव का आकलन किया जा रहा है. अमेरिका के डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिस्ऑडर में इसे पहली बार शामिल किया जा रहा है. जब पहली बार डीएसएम की रिपोर्ट जारी की जायेगी, तब उसमें इंटरनेट व्यसन के बारे में भी बताया जायेगा. चीन, ताइवान और कोरिया में इंटरनेट व्यसन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के रूप में लिया है. इन देशों ने इससे निबटने की तैयारी भी शुरू कर दी है.

13 comments:

  1. सही कहा आपने शानदार आर्टिकल.

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    1. थैंक्स प्रेम सर.

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  2. शानदार आर्टिकल.

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    1. थैंक्स अर्चना जी.

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  3. अच्छा आलेख सनिल जी आभार।

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    1. थैंक्स मनोज सर.

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    1. थैंक्स अमित सर.

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    1. थैंक्स राजेश्वर राजभर सर.

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  6. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (06-05-2013) के एक ही गुज़ारिश :चर्चा मंच 1236 पर अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें ,आपका स्वागत है
    सूचनार्थ

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    1. थैंक्स सरिता भाटिया जी.

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  7. आप सभी का लेख पर टिप्पणी का धन्यवाद.

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